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दीपों की रोशनी में जगमगाया Kartavya Path

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दिल्ली में इस वर्ष दिवाली या दीपोत्सव का पर्व नए रंग-रूप में मनाया जा रहा है। राजधानी के प्रतिष्ठित रास्ते, Kartavya Path (पूर्व में राजपथ) पर पहली बार एक भव्य सार्वजनिक आयोजन के रूप में ‘Deepotsav’ का आयोजन किया गया है, जिसमें लगभग 1 लाख 11 हजार दीएँ जलाये गए। यह सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं था — इसमें लेज़र-शो, ड्रोन शो और राम-कथा जैसी सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी शामिल थीं, जो आधुनिक तकनीक व परंपरा का संगम पेश करती थीं।


आयोजन-परिस्थिति

इस आयोजन का मुख्य स्थान था दिल्ली का Kartavya Path, जहाँ शाम होते ही मार्ग दोनों ओर दीयों की कतारें दिखीं। आयोजकों ने इसे न केवल रोशनी-उत्सव के रूप में बल्कि सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पर्व के रूप में प्रस्तुत किया।
मुख्यमंत्री Rekha Gupta तथा उनके मंत्रिमण्डल-सदस्यों ने इस आयोजन में भाग लिया। उन्होंने इसे “सनातन चेतना का जागरण” बताया।
वें आयोजन में प्रस्तुतियों के हिस्से के रूप में रामायण-थीम पर आधारित लेज़र व ड्रोन शो रखा गया, जिसने दर्शकों का ध्यान खींचा।


महत्व और विशेषताएँ

  1. एक नए स्वरूप में पर्व का प्रस्तुतीकरण — यह आयोजन सिर्फ दीएँ जलाने की परंपरा तक सीमित नहीं रहा बल्कि वहां आधुनिक प्रकाश-प्रस्तुतियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी जोड़े गए। इससे पारंपरिक और तकनीकी दोनों आयाम जुड़े।

  2. सार्वजनिक एवं प्रतीकात्मक स्थान पर आयोजन — Kartavya Path वह स्थान है जहाँ राष्ट्रीय परेड व अन्य प्रमुख आयोजन होते हैं। इस आयोजन ने उस स्थान को त्योहार क्षेत्र के रूप में पुन्ःउपयोगित किया, जिससे सार्वजनिक-सहभागिता का भाव बढ़ा।

  3. संकेतात्मक रूप से सामाजिक एकता व उत्सव-महसूस कराने की कोशिश — आयोजन में यह संदेश भी देखा गया कि त्योहार सिर्फ घर-परिवार या धार्मिक समूहों तक नए नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज-जनसाधारण के लिए हो सकता है।

  4. ब्राण्डिंग व नगरीय छवि — इस आयोजन से दिल्ली में त्योहार-उत्सव की छवि और उसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा मिल सकता है; साथ ही पर्यटकों व राजधानीवासियों को नए अनुभव का अवसर मिलेगा।


चुनौतियाँ व पृष्टभूमि

हालाँकि यह आयोजन स्वयं में सकारात्मक है, लेकिन निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:

  • पर्यावरणीय-प्रभाव: दीएँ-जलाने-वाले आयोजन में कच्चे तेल-मसालों का उपयोग होता है; यदि आसपास के क्षेत्र-वायुमंडल पर असर पड़ता है तो यह चुनौती बन सकती है।

  • भीड़-व्यवस्था तथा सुरक्षित व्यवस्था: प्रमुख सार्वजनिक स्थान पर आयोजित इतने बड़े आयोजनों में ट्रैफिक, प्रवेश-निकास, आपात-सेवाएँ आदि का प्रबंधन निर्णायक होता है।

  • सांस्कृतिक-बहिर्मुखीकरण का संतुलन: पर्व का सार्वजनिक रूप लाभदायक है, पर इसका उद्देश्य सिर्फ दृश्य-उत्सव नहीं बल्कि त्योहार का आंतरिक भाव, सामाजिक-समावेश व सांस्कृतिक संवाद भी होना चाहिए।

  • जारी रखरखाव व उपयोगिता: यह आयोजन एक-दो वर्ष का हो सकता है; लेकिन इसे निरंतरता देने के लिए आगे-विकास-योजनाएँ और स्थानीय सहभागिता बढ़ाना ज़रूरी है।


निष्कर्ष

दिल्ली के इस नए ‘Deepotsav’ आयोजन ने इस बार यह संदेश दिया है कि त्योहार सिर्फ व्यक्तिगत एवं परिवार-स्तर पर नहीं बल्कि सार्वजनिक-स्थान, बड़े पैमाने पर भी मनाया जा सकता है। Kartavya Path पर व्यापक रोशनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम और आधुनिक तकनीक-प्रस्तुतियों ने इसे विशेष बना दिया। यदि इस तरह की पहल सतत-रूप से और समावेशी-रूप से चलती है, तो यह राजधानी की सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में एक सकारात्मक मोड़ साबित हो सकती है।

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