
पंजाब इस समय बाढ़ के भयानक संकट से गुजर रहा है। लगातार बारिश और बांधों से छोड़े गए पानी ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक बाढ़ से 43 लोगों की जान जा चुकी है जबकि लगभग 1900 से अधिक गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। करीब 3.84 लाख लोग जीवन संकट में फंसे हैं और बड़ी संख्या में खेतों और घरों को नुकसान हुआ है। प्रशासन और सरकार की ओर से बचाव कार्य तेज कर दिए गए हैं। अब तक 20,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला गया है। राहत कार्यों में एनडीआरएफ की 31 टीमों के साथ सेना और वायुसेना की लगभग 20 यूनिट्स तैनात हैं। 30 से अधिक हेलीकॉप्टर और 123 नावें प्रभावित इलाकों में लगातार काम कर रही हैं।
पठानकोट जिले में हालात सबसे अधिक भयावह हैं, जहां पहाड़ दरकने से भारी तबाही हुई है। दूसरी ओर, लुधियाना में सतलुज नदी का जलस्तर लगातार बढ़ने से धुसी बांध पर खतरा मंडरा रहा है। स्थिति को संभालने के लिए सेना को बुलाया गया है और स्थानीय प्रशासन ने राहत कार्यों को और तेज कर दिया है। कैबिनेट मंत्री हरदीप सिंह मुंडियां और डीसी हिमांशु जैन खुद मौके पर मौजूद रहकर सेना और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बांध को मजबूत करने में जुटे हैं।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रभावित गांवों में एक-एक गजटेड अफसर नियुक्त किए हैं ताकि प्रशासन और लोगों के बीच सीधा समन्वय बना रहे। वहीं, राज्यपाल गुलाब चन्द कटारिया ने केंद्र को विस्तृत रिपोर्ट भेजकर राहत और पुनर्वास के लिए संसाधनों की मांग की है। विपक्ष ने भी केंद्र सरकार से त्वरित सहायता देने की अपील की है।
यह बाढ़ 1988 के बाद पंजाब की सबसे भयंकर त्रासदी मानी जा रही है। लाखों लोग विस्थापित हैं, फसलें बर्बाद हो चुकी हैं और गांवों में रोजमर्रा का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सेना, एनडीआरएफ, बीएसएफ और स्थानीय लोग एकजुट होकर राहत कार्यों में जुटे हैं, लेकिन हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचने के लिए नदियों और बांधों का दीर्घकालीन प्रबंधन, जल निकासी प्रणाली और आपदा-पूर्व चेतावनी तंत्र को मजबूत करना बेहद जरूरी है।