
23 महीनों बाद जेल से रिहाई के बाद आज़म खान को नई मुश्किल्ें हो सकती हैं
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ सपा नेता मोहम्मद आज़म खान को लगभग 23 महीने की निरंतर जेलवासी अवधि के बाद आज सीतापुर जेल से रिहा किया गया है। हालांकि उनकी रिहाई सहज नहीं हुई — दस्तावेजों, न्यायिक आदेशों और फाइन (जुर्माना) की अदायगी से जुड़ी कुछ तिकड़मों ने प्रक्रिया को देर तक खींचा।
घटनाक्रम:
आज़म खान को रैंपुर जिले में «Quality Bar land-grab» मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिली है। इसके अलावा दुंगरपुर कॉलोनी मामले में भी उन्हें राहत मिली है और एक 17 वर्षीय पुराने मामले में उन्हें विशेष MP-MLA अदालत ने बरी किया।
रिहाई की प्रक्रिया सुबह 8 बजे शुरू होनी थी, लेकिन पता चला कि आज़म खान ने ₹8,000 का जुर्माना दो मामलों में अभी तक जमा नहीं कराया है। इस फाइन की अदायगी की वजह से उनकी रिहाई कुछ घंटों के लिए रोकी गई।
Rampur की अदालत खुलने के बाद जुर्माना जमा किया गया और Sitapur जेल को फ़ैक्स भेजा गया ताकि रिहाई के आदेश जारी हो सकें।
इस दौरान Sitapur शहर में धारा 144 लागू की गई। पुलिस ने जेल के बाहर इकट्ठा हुए समर्थकों को तितर-बितर करने का काम किया और कुछ वाहनों को भी जुर्माना गया।
अभी भी लंबित चुनौतियाँ एवं कानूनी विवाद:
आज़म खान के खिलाफ 100 से अधिक मुकदमे (cases) लंबित हैं। इनमें से कुछ मुकदमों में उन्हें दोषी ठहराया गया है, सजा हुई है, जबकि कई ट्रायल की अवस्था में हैं।
कुछ आरोप नए वर्गीकरण (IPC sections) के साथ पुलिस द्वारा जोड़े गए हैं — जैसे कि फर्जी दस्तावेज़ों का प्रयोग, साक्ष्य नष्ट करना आदि — जो कि उनकी रिहाई की प्रक्रिया में बाधा बन सकते हैं।
आज़म खान की रिहाई के राजनीतिक मायने भी जोर से उभर रहे हैं क्योंकि कुछ विश्लेषक उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव (2027) से पूर्व सपा नेतृत्व से दूरी बनाने या अन्य राजनीतिक विकल्पों की ओर झुकाव रखने का संकेत दे रहे हैं।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव:
आज़म खान का रिहा होना सपा-समर्थकों के लिए बड़ी जीत मानी जा रही है, विशेषकर Rampur, Moradabad और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है और आज़म की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
उनके जेल से बाहर आने की प्रक्रिया और देरी ने यह संकेत दिया है कि कानूनी कार्यवाही इतनी सीधी नहीं होती — विधिक प्रक्रियाएँ, कागजी कार्रवाई, जुर्मानों आदि को पूरा करने की ज़िम्मेदारी केवल आरोपियों की नहीं होती, बल्कि सिस्टम की तैयारी पर भी निर्भर करती है।
यह घटना यह भी दिखाती है कि किसी नेता की रिहाई केवल मुकदमों से जमानत पाने से नहीं होती, बल्कि संबंधित सभी मामलों व अदालत आदेशों, जुर्माने और अन्य कानूनी क्लियरेंस से गुजरना होता है।