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बिहार में बंद चीनी मिलें फिर से खुलेंगी

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बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली नई सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में राज्य की अर्थव्यवस्था और गन्ना-उद्योग को मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा और प्रतीकात्मक कदम उठाया है। मंगलवार को हुई इस बैठक में कुल 6 एजेंडों को मंजूरी दी गई है, जिनमें बंद पड़ी चीनी मिलों को पुनर्जीवित करने और नई चीनी मिलों की स्थापना करने का प्रस्ताव शामिल है।

मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने बताया कि बिहार में अब कुल 25 चीनी मिलों के पुनरारंभ या नई स्थापना पर काम किया जाएगा, जिसमें से कम-से-कम 9 ऐसी मिलें हैं जो बंद पड़ी थीं और अब उन्हें फिर से चालू करने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय न सिर्फ गन्ना किसानों के लिए राहत की खबर है, बल्कि राज्य में औद्योगिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने की एक स्पष्ट नीति को दर्शाता है।

इतना ही नहीं, कैबिनेट ने 11 शहरों में नए सैटेलाइट टाउनशिप और ग्रीनफील्ड टाउनशिप बनाने का प्रस्ताव भी स्वीकार किया है। इनमें सोनपुर और सीतामढ़ी जैसे शहर शामिल हैं। यह कदम शहरीकरण को प्रोत्साहित करने और बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए नए अवसर पैदा करने की मंशा को दर्शाता है।

इसके अलावा, कैबिनेट ने उच्च-स्तरीय कमेटियों के गठन का भी निर्णय लिया है, जिनका मकसद है डिफेंस कॉरिडोर, सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग पार्क, ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स, मेगा टेक सिटी और फिनटेक सिटी जैसी योजनाओं पर काम करना। इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि नई सरकार “न्यू एज इकनॉमी” को लेकर गंभीर है और वह बिहार को तकनीकी एवं उद्योग-प्रेरित विकास का केंद्र बनाना चाहती है।

विश्लेषण करें तो यह फैसला कई मायनों में रणनीतिक है। पहले, बंद चीनी मिलों का पुनरुद्धार गन्ना किसानों की आर्थिक चिंता को सीधे टार्गेट करता है। यह सिर्फ नौकरी की समस्या नहीं है, बल्कि किसान पिछले सालों से मिलों बंद रहने की वजह से अपनी फसल बेचने में मुश्किल झेलते रहे हैं। इसीलिए, मिलों को फिर से खोलना उनकी आय को स्थिर करने का रास्ता हो सकता है।

दूसरा, टाउनशिप निर्माण और टेक्नोलॉजी-पार्क की योजना यह संकेत देती है कि बिहार सिर्फ कृषि-राज्य के रूप में नहीं बल्कि औद्योगिक जुड़ाव (industrial integration) और आधुनिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनना चाहता है। इससे पूंजी निवेश, रोजगार और युवा प्रतिभा को बढ़ावा मिलने की संभावना है।

तीसरा, इस प्रकार के फैसले राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं — मिलों का पुनरारंभ मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की “लोक-कल्याण वादा” के अनुरूप दिखता है, और यह एgenda स्थानीय किसानों और ग्रामीण इलाकों में सरकार की पहुंच और भरोसे को मजबूत कर सकता है।

हालाँकि चुनौतियाँ कम नहीं होंगी। बंद पड़ी मिलों को फिर से चलाना आसान नहीं है — उन्हें मरम्मत, मशीनरी अद्यतन, लॉजिस्टिक व्यवस्था और वित्तीय स्थिरता की जरूरत होगी। इसके अलावा, नए टाउनशिप और टेक-प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए जमीन अधिग्रहण, बुनियादी ढांचे और स्थानीय लोगों की भागीदारी जैसे मुद्दों पर भी काम करना होगा।

अगर नई सरकार इन निर्णयों को ठोस रूप में लागू कर पाती है, तो यह बिहार की औद्योगिक तस्वीर बदलने और गन्ना किसानों की दशा सुधारने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। लेकिन अगर योजना सिर्फ कागज़ों पर रह गई, तो यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक घोषणाओं का दौर ही रह जाएगा।

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