
सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना पर CJI बी.आर. गवई क्रोधित
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सुप्रीम कोर्ट में उन घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, जब एक अधिवक्ता ने उनकी ओर जूता फेंकने का प्रयास किया। इस वारदात को उन्होंने केवल एक व्यक्तिगत हमला नहीं माना, बल्कि इसे सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा और संविधान पर हमला कह कर कठोर शब्दों में खरी–खरी सुनाई।
घटना 6 अक्टूबर, 2025 को कोर्ट रूम नंबर 1 में हुई, जब 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने “सनातन धर्म का अपमान न सहेंगे” जैसे नारे लगाते हुए जूता फेंका। हालांकि, जूता न्यायाधीश तक नहीं पहुंचा — सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया। घटना के बाद पूछे गए सवालों के बीच, CJI गवई ने मीडिया से कहा कि उन्होंने उस समय अधिवक्ता से कहा था, “इसे अनदेखा करें, मैं इससे विचलित नहीं होता”। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें कोई वस्तु नहीं लगी और न ही उनकी मेज़ पर कुछ पड़ा — सिर्फ एक आवाज सुनाई दी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वे शांत थे और वे अपना काम जारी रखना चाहेंगे।
गवई ने आगे कहा कि यह घटना न्यायाधीशों के लिए केवल एक “शॉकिंग मोमेंट” थी, लेकिन अब इसे एक “भुलाए हुए अध्याय” की तरह देखा जाना चाहिए — वे अदालत के कामकाज को आगे बढ़ाना चाहते हैं। न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों ने भी इस घटना की निंदा की है। न्यायमूर्ति उज्जल भूषण ने कहा कि यह कोई मज़ाक नहीं है और इस प्रकार की हरकत न्यायपालिका को ठेस पहुँचाती है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने तुरंत राकेश किशोर की अधिवक्ता लाइसेंस निलंबित कर दी है और उनसे एक स्पष्टीकरण मांगा गया है कि उन्हें क्यों निलंबन जारी न रखा जाए। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने किशोर की अस्थायी सदस्यता समाप्त करने की घोषणा की और इसे “गंभीर दण्डनीय कदाचार” और न्यायालय के सम्मान का उल्लंघन बताया।
कई दलों और नेताओं ने इस घटना को लोकतंत्र और न्यायपालिका पर हमला बताया। AAP के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह पूरे न्यायिक तंत्र को डराने की कोशिश है और यदि ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो अन्य न्यायाधीश भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।
इस घटना की पृष्ठभूमि में एक विवाद पहले ही शुरू हो चुका था — CJI गवई ने खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति पुनर्स्थापना संबंधी याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था:
“यदि आप भगवान विष्णु के भक्त हैं, तो आप प्रार्थना करें और ध्यान करें — मूर्ति को न्यायालय नहीं बुलाया जाए।”
इस टिप्पणी पर कई लोगों ने आपत्ति जताई और इसे धार्मिक विश्वासों के प्रति उतावली और संवेदनशीलता की कमी माना। बाद में गवई ने कहा कि उन्होंने सभी धर्मों का समान सम्मान किया है और उनका अभिप्राय किसी धर्म का अपमान करना नहीं था।