
समीर वानखेड़े ने दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की शाहरुख-बेटे आर्यन की वेब सीरीज के खिलाफ याचिका
बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान द्वारा निर्देशित नए वेब सीरीज “The Bads of Bollywood” (द बैड्स ऑफ बॉलीवुड) को लेकर एक नया विवाद सामने आया है। भारत के पूर्व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) अधिकारी समीर वानखेड़े ने इस सीरीज को अपना उल्लेख किया जाने वाला, उन्हें बदनाम करने वाला और मानहानि से ग्रसित करने वाला बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी है।
वानखेड़े की मूल दलील है कि इस सीरीज में एक अधिकारी का चरित्र ऐसा दिखाया गया है जो नशे के खिलाफ कार्रवाई करता है और सीधे-सीधे बॉलीवुड को इस पर हमला करने वाला चित्रण करता है, और लोग उसे वानखेड़े के समान मानकर देख रहे हैं। एक विवादित सीक्वेंस में वह अधिकारी “Satyamev Jayate” कहलाता है और उसके तुरंत बाद वह मिडल फिंगर दिखाता है — यह सीन वानखेड़े का कहना है कि “Prevention of Insults to National Honour Act, 1971” का उल्लंघन करता है।
याचिका में वानखेड़े ने मांग की है कि इस सीरीज पर स्थायी एवं अनिवार्य निषेधाज्ञा लगाई जाए, इस प्रकार के चरित्र विवरण हटाए जाएँ, और उन्हें रू. 2 करोड़ मुआवजे का आदेश दिया जाए, जिसे वे टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में कैंसर रोगियों के इलाज के लिए दान करना चाहते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान वानखेड़े के वकील से सवाल किया कि इस तरह की याचिका दिल्ली में कैसे दायर की जा सकती है (अधिकारिता की समस्या) और मुकदमे का ढांचा (maintainability) कैसे होगा। अदालत ने पूछा कि शाहरुख खान और अन्य पक्षों को दिल्ली में ही क्यों नामित किया गया और क्यों नहीं मुंबई या अन्य न्यायक्षेत्र में।
इस विवाद को और जटिल बनाते हुए, वानखेड़े ने यह भी तर्क दिया कि मामले में अभी भी प्रक्रिया चल रही है — अर्थात् आर्यन खान के नशे से जुड़े मामले अभी बंबई हाई कोर्ट और विशेष एनडीपीएस अदालत में विचाराधीन हैं — और इस प्रकार सीरीज का ऐसा चित्रण न्यायालयीन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
यह मामला न केवल फिल्म-उद्योग की आज़ादी और कला अभिव्यक्ति के दायरे को प्रश्नों के घेरे में लाता है, बल्कि यह यह भी दिखाता है कि जब वास्तविक जीवन की घटनाएँ और व्यक्ति कथानक में शामिल हों, तो न्यायालय और मीडिया किस तरह संतुलन बनाएँ। अगर अदालत यह निर्णय करती है कि यह याचिका दिल्ली में स्वीकार्य नहीं है, तो मामला स्थानांतरित हो सकता है या इस पर विशेष प्रक्रिया लागू होगी।
मौजूदा परिस्थिति में यह देखना महत्वपूर्ण है कि न्यायालय किस प्रकार मानहानि, अभिव्यक्ति आज़ादी, और न्यायक्षेत्र (jurisdiction) के सिद्धांतों को आपस में संतुलित करता है।



