
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), जो देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है और सार्वजनिक क्षेत्र की एक प्रमुख वित्तीय संस्था मानी जाती है, ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र सरकार को ₹7,324.34 करोड़ का डिविडेंड सौंपा है। यह डिविडेंड सरकार की हिस्सेदारी के आधार पर निर्धारित किया गया है और इसे LIC की 26 अगस्त 2025 को हुई वार्षिक आम बैठक (AGM) में मंजूरी दी गई।
इस अवसर पर LIC के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक आर. दोराईस्वामी ने यह चेक केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपा। इस दौरान वित्तीय सेवा विभाग के सचिव एम. नागराजू और संयुक्त सचिव प्रशांत कुमार गोयल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।
सरकार के लिए यह डिविडेंड बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue) में बड़ा योगदान होता है। सरकार अक्सर अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने और सामाजिक-आर्थिक योजनाओं को वित्त पोषित करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड पर निर्भर रहती है। ऐसे में LIC का यह भुगतान सरकार के खजाने को मजबूती देने वाला है।
वित्तीय स्थिति की दृष्टि से भी LIC लगातार मजबूत बना हुआ है। 31 मार्च 2025 तक LIC का कुल एसेट बेस ₹56.23 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जो इसके विशाल आकार और बीमा क्षेत्र में दबदबे को दर्शाता है। यह न केवल देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है, बल्कि भारतीय वित्तीय क्षेत्र में निवेश और पूंजी जुटाने की एक प्रमुख ताकत भी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि LIC का यह कदम आत्मविश्वास और स्थिरता का संकेत है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड को सरकार न केवल अपनी आय का स्रोत मानती है बल्कि यह भी देखा जाता है कि यह संस्थान कितनी वित्तीय मजबूती के साथ देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। LIC का यह डिविडेंड 2024-25 के वित्तीय वर्ष में सरकार की योजनाओं और विकास कार्यों के लिए सहायक होगा।
भविष्य की रणनीति की बात करें तो LIC डिजिटल टेक्नोलॉजी, ग्राहक सेवा सुधार और नए बीमा उत्पादों की पेशकश पर ध्यान दे रहा है। इसके अलावा, कंपनी अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है।
कुल मिलाकर, LIC का यह डिविडेंड न केवल सरकार के लिए वित्तीय राहत लेकर आया है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की यह कंपनी आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है और आने वाले वर्षों में इसकी भूमिका और भी बढ़ने वाली है।



