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विज्ञापन जगत के शिखरस्थल्पुंज पियूष पांडे का निधन

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विज्ञापन जगत में आज एक बेहद दुखद खबर सामने आई है। भारत के विज्ञापन उद्योग के प्रणेता पियूष पांडे का आज 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। विस्तृत विवरण बताते हैं कि वे किस तरह भारतीय विज्ञापन-दुनिया को नया स्वर, नई दिशा और दिलचस्प पहचान देने वाले रहे।

पियूष पांडे ने करीब चार दशकों से अधिक समय तक सक्रिय रहकर इस क्षेत्र में ‘भारतीयता’ और ‘लोक-भावना’ को ऐसी रचना दी कि विज्ञापन सिर्फ ब्रांड का संदेश नहीं बल्कि जन-संवाद का माध्यम बन गया। उन्होंने अपने करियर में कई प्रसिद्ध और यादगार अभियानों का नेतृत्व किया — जैसे कि ब्रांडों के लिए रचे गए स्लोगन, टीवी-विज्ञापन, सामाजिक जागरूकता अभियान।

विशेषकर राजनीतिक अभियान के क्षेत्र में भी पांडे ने एक अहम भूमिका निभाई — उन्हें उस मशहूर स्लोगन “अब की बार, मोदी सरकार” का जनक माना जाता है। इस स्लोगन ने न सिर्फ एक राजनीतिक अभियान को पहचान दी, बल्कि विज्ञापन-रणनीति के दृष्टिकोण से नए आयाम स्थापित किए।

उनकी मृत्यु का कारण एक गंभीर संक्रमण था, जिससे वे कुछ समय से जूझ रहे थे। उनके निधन पर उद्योग जगत, सहकर्मी, सोशल-मीडिया पर शोक व्यक्त कर रहे हैं।


उनका सफर और विरासत

पियूष पांडे का करियर इस प्रकार था कि उन्होंने सिर्फ विज्ञापन बनाने का काम नहीं किया — उन्होंने भारतीय विज्ञापन को “भारत-स्वर” दिया।

  • 1982 में उन्हें Ogilvy (भारत) में शामिल होने का अवसर मिला, और वहीं से उन्होंने अपने विज्ञापन-सृजन (creative) की दिशा बदलना शुरू किया। उन्होंने इस उद्योग में ग्रामीण-शहरी, भारतीय-लोक-भाषा, संस्कृति-भावना का समावेश किया — उदाहरण के लिए, छोटे-छोटे दर्शकों की भाषा में विज्ञापन बना कर उन्हें ब्रांड-संदेश से जोड़ा।

  • उनके द्वारा रचे गए कुछ यादगार अभियानों में शामिल हैं: ब्रांड-विज्ञापन जैसे Cadbury का “कुछ खास है जिंदगी में”, Asian Paints का “हर घर कुछ कहता है”, Fevicol की चिपक-चिपक वाली विज्ञापन शैली।

  • उन्होंने सामाजिक जागरूकता अभियानों को भी महत्वपूर्णता दी — जैसे कि “दो बूंद जिंदगी की” पोलियो अभियान, जिसमें विज्ञापन-साधन को व्यापक जन-संपर्क का रूप दिया गया।

  • उन्हें सम्मानित किया गया — जैसे 2016 में भारत सरकार द्वारा उन्हें Padma Shri दिया गया था।

उनकी इस विरासत का मतलब यह है कि विज्ञापन एक ऐसी कला-शाखा बन गई जिसने सिर्फ उत्पाद बेचने तक सीमित नहीं रही — वह विचार, भाव, संस्कृति और पहचान बन गई।


शोक और प्रतिक्रिया

उनके निधन की खबर ने विज्ञापन-सह अन्य रचनात्मक क्षेत्र को गहरे में झकझोर दिया है। अनेक उद्योग-नेता, कलाकार और सहकर्मी सोशल मीडिया पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री) ने भी इस दुखद अवसर पर ट्वीट कर लिखा, “श्री पियूष पांडे जी रचनात्मकता के लिए प्रशंसित थे। उन्होंने विज्ञापन व संचार की दुनिया में अभूतपूर्व योगदान दिया…”


इसके बाद का असर और भविष्य

पियूष पांडे के जाने से भारतीय विज्ञापन-उद्योग एक युग-परिवर्तन का सामना कर रहा है। जहां अब युवा रचनाकारों को चुनौती है कि वे उनके बनाए सफर को आगे ले जाएँ — भारतीयता, भाव-संगति और जनसंवाद को नए युग में प्रभावी ढंग से कायम रखें।

यह विरासत आने वाले समय में निम्नलिखित रूप से असर करेगी:

  • विज्ञापन में भाषा-संस्कृति-लोकभावना की अहमियत और बढ़ेगी।

  • ब्रांड-संचार (branding & communication) में रचनात्मक विचारों का महत्व और प्रमुख होगा।

  • विज्ञापन के माध्यम से सामाजिक जागरूकता- अभियानों को नए रूप से देखने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

  • नए विज्ञापन पेशेवरों के लिए यह प्रेरणा स्रोत बनेगी कि “सिर्फ उत्पाद नहीं, संदेश भी बेचें” — जैसा पांडे जी ने किया।

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