
सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह को आतंक-वित्त पोषण मामले में अंतरिम जमानत प्रदान करने से इनकार कर दिया। साथ ही, शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को उनके मामले में जवाब दर्ज करने का नोटिस भी जारी किया है, जो अब दो सप्ताह में सुनवाई के लिए करेगा तैयारी।
1. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ और सुनवाई की रूपरेखा
जब वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसल्व्स ने शाह की ओर से अंतरिम जमानत की मांग की, तब जस्टिस विक्रम नाथ ने सख्ती से टिप्पणी की—”आज ही रिहा कर दें?”—और स्पष्ट रूप से कहा, “No interim bail”।
इसके बाद कोर्ट ने NIA को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, साथ ही मामले की अगली सुनवाई भी दो सप्ताह बाद निर्धारित की।
2. पूर्व कानूनी क्रमवार्ता और हाई कोर्ट का रुख
शाह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में 12 जून 2025 को जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे उसी दिन वह अदालत ने खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा कि उनकी रिहाई से “अनुचित गतिविधियों की पुनरावृत्ति” और “गवाहों को प्रभावित करने” की संभावना बनी रहेगी।
हाई कोर्ट ने यह निर्णय पाटियाला हाउस की NIA विशेष अदालत के 7 जुलाई 2023 के निर्णय के अनुरूप दिया था, जिसने पहले ही शाह को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया था।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में हिंसात्मक, निजीकरण और देश की अखंडता को नुकसान पहुँचाने वाले भाषण शामिल नहीं हो सकते। निर्णय में कहा गया कि ऐसे अधिकारों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
3. शाह पर लगे आरोपों की प्रकृति
शब्बीर अहमद शाह पर NIA द्वारा 2017 में दर्ज मामले में आरोप है कि उन्होंने हवाला लेनदेन और LoC ट्रेड के माध्यम से फंड जुटाकर राजकीय संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने, पत्थरबाजी, अशांति और भारत सरकार के विरुद्ध “युद्ध घोषणाओं” जैसी गतिविधियों को वित्तपोषित किया।
अदालत ने यह भी नोट किया कि शाह जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी (JKDFP) के अध्यक्ष हैं और उन पर 24 विभिन्न आपराधिक मामलों के तहत मुकदमे हैं, जिनमें से ज्यादातर समान प्रकृति के हैं—अलगाव और अस्थिरता से जुड़े।