
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट पहलगाम में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ। इस हमले में 26 आम नागरिकों की जान चली गई, जिनमें स्थानीय निवासी और कुछ पर्यटक शामिल थे। हमला बेहद योजनाबद्ध था और शुरुआती जांच में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकियों की संलिप्तता सामने आई है।
🚨 कार्रवाई का नया फॉर्मूला: “जिसने पनाह दी, वो खुद मिटा दिया जाएगा”
हमले के बाद सरकार ने साफ कर दिया कि अब केवल आतंकियों को ही नहीं, बल्कि उन्हें समर्थन देने वालों, उन्हें छुपाने वालों और उनके नेटवर्क का हिस्सा बनने वालों को भी नहीं छोड़ा जाएगा।
🔥 तीन ज़िले, तीन धमाके:
- पुलवामा:
– यहां एक घर को विस्फोटकों से उड़ा दिया गया जो एक वांछित आतंकी के भाई का बताया जा रहा है।
– इंटेलिजेंस इनपुट के अनुसार यह घर लंबे समय से आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल हो रहा था। - शोपियां:
– इस घर में सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी छिपे होने की सूचना मिली थी। हालांकि ऑपरेशन से पहले आतंकी भाग निकले, लेकिन घर को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। - कुलगाम:
– यहां एक निर्माणाधीन मकान को उड़ाया गया जिसे कथित तौर पर आतंकी ठिकाने के रूप में तैयार किया जा रहा था।
🧠 सरकार की रणनीति क्या है?
- Local Support को काटना:
आतंकवाद को खत्म करने के लिए सिर्फ हथियार उठाने वाले को खत्म करना काफी नहीं, उन्हें मदद देने वाले नेटवर्क को खत्म करना जरूरी है। - संदेश देना:
यह कार्रवाई पूरी घाटी में एक कड़ा संदेश भेजती है – “अब कोई आतंकी तुम्हारे घर में छुपेगा, तो घर भी सलामत नहीं रहेगा।”
🗣️ स्थानीय लोगों की राय मिली-जुली
- कुछ स्थानीय निवासी डरे हुए हैं। उनका कहना है कि निर्दोषों को नुकसान नहीं होना चाहिए।
- वहीं कई लोगों ने इस सख्ती का समर्थन किया है, क्योंकि इससे आतंकियों को मिलने वाला सामाजिक आधार कमजोर होगा।
🧾 निष्कर्ष:
पहलगाम हमले के बाद केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब घाटी में “Soft Policy” की कोई जगह नहीं। अब कार्रवाई न सिर्फ आतंकियों पर है, बल्कि उनकी छाया और समर्थन तंत्र पर भी है।
यह ऑपरेशन घाटी में नई सुरक्षा नीति का संकेत है — जो सिर्फ गोलियों से नहीं, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव से भी आतंकवाद को कुचलने की ओर बढ़ रही है।
