
पुरी (ओडिशा) में हर वर्ष निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्वभर में श्रद्धा, संस्कृति और भक्ति का सबसे बड़ा उत्सव मानी जाती है। वर्ष 2025 में यह दिव्य यात्रा 7 जुलाई को निकाली जाएगी, लेकिन इसकी तैयारियाँ 30 अप्रैल से ही शुरू हो गई हैं — क्योंकि अक्षय तृतीया के दिन तीनों रथों के निर्माण की परंपरा निभाई जाती है।
📖 रथ यात्रा का पौराणिक महत्व:
श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण के अनुसार, द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण, उनके भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा जी एक बार रथ पर नगर भ्रमण के लिए निकले थे। उसी स्मृति में हर वर्ष पुरी में जगन्नाथ जी को श्रीमंदिर से बाहर निकालकर भक्तों के बीच ले जाया जाता है। यही परंपरा रथ यात्रा कहलाती है।
यह यात्रा पुरी से 3 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जहां भगवान एक सप्ताह रुकते हैं और फिर वापस लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहते हैं।
🛠️ रथ निर्माण की परंपरा और विशेषता:
- रथ निर्माण कार्य पुरी मंदिर के पास ‘रथ खला’ नामक स्थान पर होता है।
- निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से आरंभ होता है, जिसे शुभ और अविनाशी दिन माना जाता है।
- रथों की लकड़ी केवल नीम (दारु ब्रह्म) और नारियल के पेड़ से ली जाती है, जो खास तौर पर दसपल्ला के जंगलों से लाई जाती है।
- लकड़ी लाने की प्रक्रिया, कारीगरों का चयन और निर्माण प्रक्रिया पूरी तरह पारंपरिक वैदिक विधियों से होती है।
- रथों का निर्माण हर साल नया किया जाता है — पुराने रथों का उपयोग दोबारा नहीं होता।
🚩 तीनों रथों के नाम और विवरण:
- भगवान जगन्नाथ का रथ – नंदीघोष रथ
- रंग: लाल और पीला
- पहिए: 16
- ऊंचाई: लगभग 44 फीट
- लकड़ी के 832 टुकड़ों से बनाया जाता है।
- रथ के आगे गरुड़ ध्वज और ऊपर सुदर्शन चक्र होता है।
- बलभद्र जी का रथ – तालध्वज रथ
- रंग: नीला और काला
- पहिए: 14
- ऊंचाई: लगभग 43 फीट
- ध्वज पर हल और मूसल के चिन्ह होते हैं।
- देवी सुभद्रा का रथ – देवदलन / दर्पदलन रथ
- रंग: काला और लाल
- पहिए: 12
- ऊंचाई: लगभग 42 फीट
- रथ को ‘अहंकार का दलन करने वाला’ भी माना जाता है।
🙏 अनुष्ठान और सामाजिक महत्व:
- रथ निर्माण की प्रक्रिया में विशेष परिवारों के कारीगर (विश्वकर्मा जाति) ही भाग लेते हैं।
- रथ यात्रा में भाग लेना मोक्षदायी माना गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति रथ खींचता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।
- यह एक अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक समरसता का प्रतीक उत्सव बन चुका है, जिसमें हर जाति, पंथ और वर्ग के लोग शामिल होते हैं।
📅 महत्वपूर्ण तिथियाँ (2025):
- अक्षय तृतीया (रथ निर्माण की शुरुआत): 30 अप्रैल 2025
- रथ यात्रा दिवस: 7 जुलाई 2025 (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया)
- बहुदा यात्रा (वापसी): 15 जुलाई 2025
- नीलाद्री विजय (श्री मंदिर वापसी): 16 जुलाई 2025
🔚 निष्कर्ष:
पुरी की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना और विश्व में आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है। इसकी परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, जो अब न केवल भारत बल्कि दुनियाभर के लोगों को जोड़ती है। 2025 की यात्रा, अक्षय तृतीया जैसे पावन दिन से शुरू होकर फिर से श्रद्धा और आस्था की ऊंचाइयों को छूने जा रही है।