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महारानी होप कुक की ‘जासूसी राजनीति’ को मात देकर अजीत डोभाल का सफल ऑपरेशन

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भारत के इतिहास में सिक्किम का विलय एक बेहद संवेदनशील और रणनीतिक घटना मानी जाती है। यह घटना केवल राजनीतिक या कूटनीतिक नहीं थी, बल्कि इसमें खुफिया एजेंसियों की बड़ी भूमिका रही। 1970 के दशक में जब सिक्किम में अस्थिरता बढ़ रही थी, तब खुफिया अधिकारी अजीत डोभाल (जो आगे चलकर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने) ने एक महत्वपूर्ण मिशन को अंजाम दिया, जिसने अंततः सिक्किम को भारत का हिस्सा बनाने में अहम भूमिका निभाई।

होप कुक: अमेरिकी महारानी और सीआईए से संबंधों के आरोप

सिक्किम के राजा (चोग्याल) पल्डेन थोंडुप नामग्याल की शादी एक अमेरिकी युवती होप कुक से हुई थी। होप कुक ने शादी के बाद खुद को सिक्किम की महारानी घोषित किया। पश्चिमी मीडिया में उनकी छवि आकर्षक और प्रभावशाली बनाई गई, लेकिन भारत के लिए वह ‘जासूस रानी’ बन गईं। उन पर आरोप लगे कि वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के संपर्क में थीं और भारत विरोधी माहौल बनाकर सिक्किम को भारत से अलग रखने की कोशिश कर रही थीं।

सिक्किम में भारत विरोधी माहौल

होप कुक अक्सर विदेशी मीडिया को इंटरव्यू देकर सिक्किम को ‘भारत से दबाव में’ बताया करती थीं। उनका प्रभाव इतना बढ़ा कि चोग्याल ने भी कई बार दिल्ली से दूरी बनाने की कोशिश की। वहीं दूसरी ओर, सिक्किम की नेपाली मूल की बहुसंख्यक आबादी धीरे-धीरे चोग्याल और महारानी से नाराज होती जा रही थी। वे खुद को शाही परिवार द्वारा दबाया हुआ महसूस करते थे और भारत से जुड़ने को बेहतर विकल्प मानते थे।

अजीत डोभाल का मिशन

ऐसे कठिन समय में भारत सरकार ने युवा खुफिया अधिकारी अजीत डोभाल को सिक्किम भेजा। उनका काम था जनता की नब्ज पकड़ना, नेताओं और आम लोगों के साथ संपर्क करना और भारत विरोधी ताकतों की साजिशों को नाकाम करना। डोभाल ने स्थानीय समाज में गहराई तक घुसकर संवाद स्थापित किया। उन्होंने जनता के असंतोष को समझा और उसे राजनीतिक रूप से भारत के पक्ष में मोड़ने की रणनीति बनाई।

महारानी का पतन और भारत की बढ़त

1973 आते-आते सिक्किम में राजशाही के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया। जनता सड़कों पर उतर आई और महारानी होप कुक पर सीधे आरोप लगने लगे कि वह विदेशी ताकतों के इशारों पर काम कर रही हैं। बढ़ते दबाव के चलते होप कुक अमेरिका लौट गईं और फिर कभी सिक्किम नहीं लौटीं। उनके जाने से चोग्याल कमजोर हो गए और भारत का प्रभाव सिक्किम पर और मजबूत हो गया।

1975 का जनमत संग्रह और विलय

अप्रैल 1975 में सिक्किम विधानसभा ने राजशाही समाप्त करने और भारत से जुड़ने का प्रस्ताव पास किया। इसके बाद जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें 97% से अधिक लोगों ने भारत में विलय के पक्ष में मतदान किया। इसके साथ ही सिक्किम को भारत का 22वां राज्य घोषित कर दिया गया।
यह पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही और इसमें खुफिया स्तर पर किए गए प्रयासों का बड़ा योगदान रहा। अजीत डोभाल की सक्रिय भूमिका ने सुनिश्चित किया कि बाहरी ताकतें सिक्किम के विलय को विफल न कर सकें।

रणनीतिक महत्व

सिक्किम का भारत में शामिल होना केवल राजनीतिक सफलता नहीं थी, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। यह क्षेत्र चीन की सीमा से सटा हुआ है और भारत की सुरक्षा के लिए बेहद संवेदनशील माना जाता है। सिक्किम भारत का हिस्सा बनने के बाद हिमालयी सीमा की सुरक्षा और मजबूत हुई और चीन की संभावित घुसपैठ के खतरे काफी हद तक कम हुए।

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