
सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई 2025 को फैसला सुनाया कि अगर पति या पत्नी ने गुप्त रूप से दूसरी पक्ष की फोन बातचीत रिकॉर्ड की है, तो उसे पारिवारिक/मातृत्व विवादों में कानूनी सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है ।
इस निर्णय के साथ सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें यह कहा गया था कि बिना अनुमति के रिकॉर्ड की गई कॉल निजी गोपनीयता का उल्लंघन है ।
न्यायमूर्ति बीवी नागरथना और न्यायमूर्ति सतीश चन्द्र शर्मा की बेंच ने यह तर्क दिया कि अगर दंपति एक-दूसरे की बातचीत गुपचुप रिकॉर्ड करने तक पहुंच चुके हैं, तो यह पहले से ही विवाह में विश्वास की कमी और टूटी हुई स्थिति को दर्शाता है, न कि घरेलू सौहार्द को खतरे में डालने का कारण ।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 में दी गई स्पousal प्रिविलेज पूरी तरह निषेधात्मक नहीं है और उसमें मुकदमेबाजी के मामलों में रिकॉर्डिंग की छूट दी गई है।
मूल मामला एक बठिंडा फैमिली कोर्ट से शुरू हुआ था, जहाँ पति ने अपनी पत्नी द्वारा कथित क्रूरता साबित करने के लिए कॉल रिकॉर्डिंग को सबूत के रूप में प्रस्तुत किया था। उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध ठहराया।
अब फैमिली कोर्ट को इस नए निर्देश के अनुसार रिकॉर्ड की गई कॉलों को प्रमाणों के रूप में दोबारा सुनना होगा ।