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क्यों न उन्हें अपने घर पर ही खिलाएं?”

आज, 15 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक रेहड़ी-पटरी वाले द्वारा दायर पिटिशन पर सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक स्थलों पर समुदायिक कुत्तों को खिलाने पर उत्पीड़न का आरोप लगाया। प्रमुख न्यायाधीशों विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने पूछा:

“क्यों न आप उन्हें अपने घर पर ही खिलाएं? हमारे पास इन जानवरों के लिए जगह तो बहुत है, लेकिन इंसानों के लिए जगह नहीं बचती है”

पीठ ने यह भी कहा कि:

“क्या हमें हर गली‑मोहल्ले को इन ‘बड़े दिलवाले’ लोगों के लिए खोल देना चाहिए? कोई रोक नहीं रहा है।”

यह सुनवाई उस आदेश से जुड़ी है जिसे अलाहाबाद हाई कोर्ट ने मार्च 2025 में पारित किया था, जिसमें समुदायिक कुत्तों को खाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया था । सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि यदि कोई व्यक्ति गली-मोहल्लों में कुत्तों को खाने के लिए कपड़े आदि फैलाता है, तो इसे घर के अंदर ही करने का विकल्प है—उनके अनुसार, सार्वजनिक जगहों पर फैलाने से मानव जीवन प्रभावित हो रहा है ।


पृष्ठभूमि और कानूनी दृष्टिकोण

  • अक्वायरमेंट ऑफ़ समुदायिक कुत्तों की चिंता: दिल्ली हाई कोर्ट ने मार्च 2024 में कथित रूप से इस आदेश को लिया था कि कुत्तों को सार्वजनिक या रिहायशी क्षेत्रों में बेसीखाने से उन्हें “टेरिटोरियल” बनाकर खतरनाक बना रहा है ।
  • 2010 के गाइडलाइन्स: दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009–2010 में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए थे कि कुत्तों को केवल नियमित जगहों पर ही खाना दें और सफाई का ध्यान रखें । इसके अलावा कानूनन नागरिकों को कुत्तों को घर-घर में पालन और खिलाने की भी छूट दी गई थी।
  • विवादों का केंद्र: सुप्रीम कोर्ट अब यह स्पष्ट करना चाहता है कि क्या सार्वजनिक जगहों पर भोजन फैलाना मानव सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है, जबकि साथ में गाइडलाइन्स और संवैधानिक व पशु अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना भी आवश्यक है।

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