
इंफोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति ने एक बार फिर भारत के युवाओं को सप्ताह में 72 घंटे काम करने की सलाह दी है, और इस बार उन्होंने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए चीन के विवादित 9-9-6 वर्क कल्चर (सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, हफ्ते में 6 दिन) का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि चीन जैसे देश आर्थिक रूप से आगे इसलिए बढ़े हैं क्योंकि उनका युवा वर्ग कड़ी मेहनत से पीछे नहीं हटता। मूर्ति ने कहा—“कोई भी देश बिना मेहनत के आगे नहीं बढ़ा है, हमें भी त्याग करना होगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय युवाओं को पहले “जीवन बनाना चाहिए”, उसके बाद “वर्क-लाइफ बैलेंस” अपने आप मिलेगा। मूर्ति के अनुसार, यदि भारत को दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होना है, तो आने वाले 2-3 दशकों तक भारतीयों को अधिक काम करने की मानसिकता अपनानी ही होगी। उनके मुताबिक देश को बदलने के लिए “उत्पादन और अनुशासन” बेहद आवश्यक हैं।
लोगों की प्रतिक्रियाएँ: सोशल मीडिया पर बड़ा विवाद
नारायण मूर्ति के इस बयान ने इंटरनेट पर जबरदस्त बहस छेड़ दी है। युवाओं, पेशेवरों और कॉरपोरेट कर्मचारियों की प्रतिक्रियाएँ तेजी से सामने आ रही हैं —
1. युवा वर्ग का गुस्सा:
कई युवाओं ने कहा कि वे पहले से ही भारी काम के बोझ, ट्रैफ़िक और तनाव में जी रहे हैं। उन्हें लगता है कि 72 घंटे काम कराने की वकालत “जमीनी हकीकत से दूर” है। कुछ ने कहा कि भारत में तो पहले से ही ज्यादातर कंपनियाँ अनऑफिशियल 60+ घंटे वर्कवीक चलाती हैं। युवाओं की प्रतिक्रियाएँ बताते हुए रिपोर्ट्स में लिखा गया है कि वे इस सलाह से नाराज़ हैं और कह रहे हैं कि “काफी हो चुका।”
2. HR और वर्कप्लेस विशेषज्ञों की आलोचना:
कई विशेषज्ञों ने कहा कि लंबी वर्कवीक से बर्नआउट, मानसिक तनाव और उत्पादकता में गिरावट आती है। उनका मानना है कि आधुनिक कंपनियाँ “स्मार्ट वर्क” को प्राथमिकता देती हैं, न कि “लंबे घंटे” को।
3. कुछ लोगों ने मूर्ति का समर्थन भी किया:
कुछ उपयोगकर्ताओं ने कहा कि मूर्ति की बात गलत नहीं है, क्योंकि भारत वाकई उत्पादकता के मामले में चीन और पश्चिमी देशों से पीछे है। उनके अनुसार शुरुआती पीढ़ियों को देश को आगे ले जाने के लिए बलिदान देना ही होगा।
4. मीम्स और व्यंग्य की बाढ़:
सोशल मीडिया पर इसका मज़ाक उड़ाते हुए मीम्स भी वायरल हो रहे हैं —
“72 घंटे काम करने के बाद हम दिखेंगे या सिर्फ आत्मा ऑफिस जाएगी?”
“सर, 72 घंटे तो हम पहले ही कर रहे हैं, तनख्वाह भी चीन जैसी दिलवा दो।”
ये प्रतिक्रियाएँ दिखाती हैं कि जहां एक ओर मूर्ति की सोच देश के विकास पर केंद्रित है, वहीं दूसरी ओर युवा वर्ग अपनी वास्तविक जीवन की मुश्किलों को अनदेखा किए जाने से नाराज़ दिखाई देता है।



