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ट्रंप प्रशासन में व्हाइट हाउस के सलाहकार बने दो पूर्व जिहादी

वॉशिंगटन डी.सी. – अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान बनाए गए एक धार्मिक सलाहकार बोर्ड में दो विवादास्पद नामों को शामिल किया गया था। इन दोनों व्यक्तियों में से एक का नाम इस्माइल रॉयर (Ismail Royer) है, जिसका पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और अल-कायदा से संबंध रहा है। दूसरा नाम शेख हमजा यूसुफ (Shaykh Hamza Yusuf) का है, जो अमेरिका में इस्लामिक शिक्षा के क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम हैं।


🔴 इस्माइल रॉयर – लश्कर से जुड़े होने का अतीत

  • इस्माइल रॉयर एक समय अमेरिका में इस्लामिक थॉट के प्रचारक और लेखक रहे हैं।
  • वर्ष 2000 में उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया था, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित था।
  • अमेरिकी अदालत में उन्होंने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने हथियारों और विस्फोटकों को एक विदेशी आतंकी समूह को प्रदान करने में मदद की।
  • 2004 में उन्हें इस मामले में 20 साल की सजा सुनाई गई, जिसमें से उन्होंने करीब 13 साल जेल में बिताए

हालांकि रॉयर अब दावा करते हैं कि उन्होंने अपने पुराने विचारों से तौबा कर ली है और अब वे अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।


🟠 शेख हमजा यूसुफ – विवादों में क्यों?

  • शेख हमजा यूसुफ अमेरिका के एक प्रतिष्ठित इस्लामिक विद्वान हैं।
  • वे अमेरिका के पहले मुस्लिम लिबरल आर्ट्स कॉलेज ज़ैतुना कॉलेज (Zaytuna College) के सह-संस्थापक हैं।
  • उनका लश्कर-ए-तैयबा या किसी आतंकी संगठन से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं रहा है।
  • लेकिन उन्हें लेकर विवाद इसलिए है क्योंकि उन्होंने अतीत में कुछ ऐसे लोगों के साथ संबंध रखे हैं जिनकी विचारधारा कट्टरपंथी मानी जाती है

कुछ आलोचकों का कहना है कि यूसुफ की विचारधारा कई बार अल्पसंख्यकों और उदार मुसलमानों के प्रति असंवेदनशील रही है। इसके बावजूद, वे कई मौकों पर अमेरिकी सरकार के साथ सहयोग करते रहे हैं


🧨 क्यों उठा विवाद?

  • इन दोनों की नियुक्ति अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के सलाहकार बोर्ड में की गई थी, जिसे ट्रंप प्रशासन ने गठित किया था।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे लोगों को उच्च पदों पर नियुक्त करना संवेदनशीलता और पारदर्शिता के खिलाफ है।
  • खासकर इस्माइल रॉयर की नियुक्ति से यह सवाल खड़ा होता है कि क्या पूर्व आतंकियों को पुनर्वास के नाम पर उच्च पदों पर बैठाना सुरक्षित है?

ट्रंप प्रशासन की चुप्पी

ट्रंप प्रशासन की ओर से इस मामले में कोई औपचारिक बयान नहीं दिया गया है। लेकिन यह स्पष्ट है कि इन नियुक्तियों का उद्देश्य “धार्मिक विविधता को शामिल करना” बताया गया था।

हालांकि, आतंकी संगठनों से जुड़े अतीत को देखते हुए इन नियुक्तियों की नैतिकता और सुरक्षा पर सवाल उठना स्वाभाविक है।


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