
महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा और पहचान को लेकर जारी बहस के बीच ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे द्वारा मराठी भाषा और हिंदुत्व के मुद्दों को जिस तरीके से राजनीतिक मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा है, उसपर गंभीर प्रश्न उठाए हैं।
स्वामी जी ने कहा कि ठाकरे परिवार मूल रूप से महाराष्ट्र से नहीं, बल्कि बिहार के प्राचीन मगध क्षेत्र से हैं। इसके बावजूद महाराष्ट्र ने उन्हें खुले दिल से अपनाया, लेकिन अब वे मराठी अस्मिता के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, जो आत्ममंथन का विषय है।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए पूछा कि क्या अब “मराठी को कान में झुनझुना बनाकर” हर मंच पर बजाने से ही उसकी गरिमा तय होगी? या क्या इससे भाषा का नुकसान होगा? उनके अनुसार किसी भी भाषा को राजनीति का औजार बनाना उसकी आत्मा को खोखला कर देता है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदी देश की राजभाषा है और उसे सम्मान देना हर नागरिक का कर्तव्य है। उन्होंने यह प्रश्न भी उठाया कि क्या राजनीति की खातिर मातृभाषाओं को एक-दूसरे से टकराने के लिए खड़ा किया जाना चाहिए?
ठाकरे बंधुओं के गठबंधन पर भी उन्होंने शंका व्यक्त की। उनका कहना था कि यह गठबंधन सत्ता की मजबूरी है, न कि वैचारिक एकता। उनके मुताबिक यह साथ ज्यादा दिन टिकेगा नहीं, क्योंकि दोनों नेताओं की राजनीतिक दिशा और विचारधारा समय के साथ बहुत बदल चुकी है।
उन्होंने राज्य की सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि धर्म का राजनीतिक मंच पर उपयोग अब एक आदत बन चुका है, जिससे समाज को नुकसान हो रहा है। उन्होंने मांग की कि धर्म को वोट बैंक की बजाय जीवन मूल्यों के रूप में समझा जाए।