
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय गृहों में रखने का आदेश दिया है, यह आदेश आठ सप्ताह के भीतर लागू किए जाने के निर्देश के साथ आया है ।
इस निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इसे “गुस्से में दिया गया एक अजीब फैसला” बताया। उन्होंने कहा कि यह आदेश “व्यवहार में असंभव, वित्तीय रूप से अव्यवहार्य और पारिस्थितिक रूप से हानिकारक” है ।
मेनका गांधी ने कहा कि दिल्ली में तीन लाख आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर भेजना असंभव है, क्योंकि इसके लिए 3,000 पाउंड (पशु आश्रय केंद्र) बनाना पड़ेगा, हर पाउंड में जल आपूर्ति, भोजन, देखभाल करने वाले और चौकीदार की व्यवस्था करनी होगी, जिसकी लागत लगभग ₹10,000–15,000 करोड़ होगी। इसके अलावा, इन कुत्तों को खिलाने पर हर हफ्ते 5 करोड़ रुपये खर्च होंगे ।
उन्होंने यह भी कहा कि इससे feeders (पशु-पोषक) और कुत्तों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि अगर कुत्ते हटाए गए, तो आसपास के इलाकों जैसे गाजियाबाद और फरीदाबाद से नए कुत्ते भोजन की तलाश में दिल्ली आ जाएंगे, जिससे समस्या और बढ़ जाएगी। उन्होंने पेरिस की उदाहरण का भी हवाला दिया, जहाँ 1880 के दशक में कुत्ते और बिल्ली हटाए जाने पर चूहों की बढ़ोतरी हो गई थी ।
मेनका गांधी ने इस आदेश की वैधता पर भी सवाल उठाता हुए कहा कि एक महीने पहले इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने एक संतुलित फैसला सुनाया था। अब नए आदेश ने सबको पकड़ने की बात कही है। उन्होंने पूछा कि कौन सा फैसला मान्य रहेगा: पुराना स्थापित संतुलित फैसला, या यह नया, आवेशपूर्ण फैसला?