
हाल के महीनों में अमेरिका और यूरोप के रिश्तों में हल्की‑मोटी खटास साफ दिखने लगी है। कई मुद्दों पर दोनों के रुख में फर्क दिख रहा है, जिससे पारंपरिक पश्चिमी एकता कमजोर होती नजर आ रही है।
मुख्य वजहें
- रूस-यूक्रेन युद्ध
अमेरिका हथियार और पैसा भेजने में थकान महसूस कर रहा है। यूरोप चाहता है कि अमेरिका और मजबूती से समर्थन करे। यूरोपीय देश खुद भी यूक्रेन को समर्थन देने में बंटे हुए हैं। - चीन को लेकर रणनीति
अमेरिका चाहता है कि यूरोप चीन को तकनीकी और व्यापारिक चुनौती के तौर पर देखे और उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए। लेकिन यूरोप चीन के साथ कारोबार भी जारी रखना चाहता है और उससे पूरी तरह दूरी नहीं चाहता। - रक्षा पर निर्भरता
यूरोप अब महसूस कर रहा है कि उसे अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर इतना निर्भर नहीं रहना चाहिए। फ्रांस और जर्मनी जैसे देश यूरोपीय रक्षा व्यवस्था को मजबूत करने की बातें कर रहे हैं। - आर्थिक प्रतिस्पर्धा और कानून
अमेरिका ने Inflation Reduction Act (IRA) के तहत हरित ऊर्जा सब्सिडी दी, जिससे यूरोपीय कंपनियों को नुकसान हो रहा है। यूरोप को लगता है अमेरिका “प्रोटेक्शनिज्म” कर रहा है।
इसके संभावित नतीजे
- नाटो की एकता कमजोर हो सकती है
रूस के खतरे के बीच यूरोप-अमेरिका में फूट से नाटो की सामूहिक सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है। - रूस और चीन को फायदा
पश्चिमी देशों में बिखराव से रूस और चीन को कूटनीतिक बढ़त मिल सकती है। - यूरोपीय सैन्यकरण बढ़ेगा
यूरोप अपनी सुरक्षा के लिए खुद पर ज्यादा खर्च करेगा। इससे हथियारों की होड़ भी बढ़ सकती है। - व्यापारिक खींचतान
अमेरिका और यूरोप के बीच व्यापार में विवाद बढ़ सकते हैं। यूरोप अमेरिकी सब्सिडी को अनुचित मानता है।