
दलाई लामा, जिन्होंने हाल ही में घोषणा की कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान केवल गदेन फोड्रांग ट्रस्ट के अधिकार क्षेत्र में होगी, यानी उनका आधिकारिक कार्यालय, और इसमें चीन या किसी अन्य सरकार को कोई हस्तक्षेप नहीं रहेगा ।
उन्होंने बताया कि उत्तराधिकारी को चुनने में प्रमुख भूमिका लामा परंपरा के वरिष्ठ धर्मगुरु और धार्मिक संरक्षक निभाएंगे, और प्रक्रिया पारंपरिक तरीके से यानी पुनर्जन्म की पहचान के माध्यम से पूरी होगी ।
इसके साथ उन्होंने आश्वासन भी दिया कि यह परंपरा जारी रहेगी और सुझाया कि पुनर्जन्म “फ्री वर्ल्ड” यानी “आजाद दुनिया” में होगा — स्पष्ट रूप से चीन के बाहर ।
चीन की प्रतिक्रिया
चीन ने इस घोषणा का कड़ा विरोध किया है और दावा किया कि दलाई लामा की पहचान की प्रक्रिया को “गोल्डन अर्न” से करना होगा और मुख्य रूप से चीन सरकार द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।
चीन के विदेश मंत्रालय ने इसे राजनीतिक हस्तक्षेप बताया और कहा कि पुनर्जन्म प्रक्रिया को चीन के धार्मिक कानूनों और ऐतिहासिक प्रथाओं के अनुसार होना चाहिए ।
तिब्बती समुदाय और निर्वासित सरकार की प्रतिक्रिया
दलाई लामा की इस घोषणा का निर्वासित तिब्बती सरकार तथा धर्मगुरु समुदाय ने गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने इसे “चीन के लिए एक तेज़ संदेश” के रूप में देखा कि धर्मिक परम्पराओं में किसी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जाएगी ।
विशेष रूप से तिब्बती महिला संघ की कार्यवाहक तेनज़िन न्यायिमा और लेखक-कार्यकर्ता तेनज़िन त्सुन्द्यू ने जोर देकर कहा कि गदेन फोड्रांग अकेले ही इस प्रक्रिया का निर्णय लेने में सक्षम है ।
पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
- दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की परंपरा का जीवंत प्रतीक हैं, जिन्हें 1959 में निर्वासन के बाद भारत में आश्रय मिला था ।
- चीन और तिब्बती पुनर्जन्मों के चयन पर लंबे समय से संघर्ष में रहा है; उदाहरण के रूप में 1995 में पन्चेन लामा के मामले में चीन ने अपने समर्थित उम्मीदवार की नियुक्ति की थी, जबकि वास्तविक आलोचकों को नजरबंद कर दिया गया था ।
- 2007 में चीन ने धार्मिक मामलों पर कानून बनाकर पुनर्जन्म के चयन में चीन का नियंत्रण स्पष्ट कर दिया था ।
- अमेरिका ने 2020 में तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम पारित कर दलाई लामा और तिब्बती धार्मिक परंपराओं में विदेशी राजनीति के हस्तक्षेप का विरोध किया था ।