
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आत्मघाती आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक और सैन्य तनाव चरम पर पहुंच गया है। इस हमले में 28 निर्दोष नागरिकों की मौत हो गई, जिनमें से कई पर्यटक थे। भारत सरकार ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) का हाथ बताया है। यह संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
हमले के बाद भारत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं:
- सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया है।
- पाकिस्तानी नागरिकों को दी गई वीजा छूट रद्द कर दी गई है।
- वाघा-अटारी सीमा को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है।
- पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब कर कड़ा विरोध दर्ज कराया गया है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया:
इन कार्रवाइयों से नाराज होकर पाकिस्तान ने भी त्वरित और सख्त कदम उठाए:
- भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है।
- वाघा बॉर्डर से आवागमन को पूरी तरह रोक दिया गया है।
- पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से सिंधु जल संधि को भारत द्वारा छेड़ने को ‘युद्ध की कार्रवाई’ बताया है।
- साथ ही, पाकिस्तान ने यह भी संकेत दिया है कि वह 1972 के शिमला समझौते को रद्द करने पर विचार कर सकता है, जो दोनों देशों के बीच युद्ध के बाद शांतिपूर्ण संवाद की आधारशिला माना जाता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
भारत में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा,
“भारत अब आतंक के खिलाफ अपने जवाब में संकोच नहीं करेगा। हमारे नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है।”
पाकिस्तान में भी संसद में बहस छिड़ गई है, जहां सरकार पर भारत के साथ रिश्तों को बिगाड़ने का आरोप लगा है, वहीं कट्टरपंथी ताकतें भारत के खिलाफ और भी कड़े रुख की मांग कर रही हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया:
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने दोनों देशों से संयम बरतने और आपसी संवाद बनाए रखने की अपील की है। अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा कि,
“दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद अत्यंत आवश्यक है।”
विश्लेषण:
यह घटना सिर्फ एक आतंकी हमले की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि भारत की विदेश नीति में बदलते तेवरों और पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता का संकेत भी है। दोनों देशों के बीच यह टकराव यदि समय रहते नहीं सुलझा, तो इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया की शांति पर पड़ सकता है।