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इस्राइल ने युद्ध में AI का किया इस्तेमाल

गाजा में जारी इस्राइल और हमास के बीच युद्ध में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की भूमिका अब खुलकर सामने आ रही है। माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) ने आधिकारिक रूप से स्वीकार किया है कि उसने इस्राइल डिफेंस फोर्स (IDF) को युद्ध के दौरान अपनी क्लाउड सेवाएं (Azure) और डेटा एनालिटिक्स जैसे AI टूल्स मुहैया कराए।

हालांकि Microsoft ने यह स्पष्ट किया कि उसने इस्राइल को GPT-4 जैसे संवेदनशील और जनरल-परपज़ AI मॉडल नहीं दिए हैं, लेकिन यह स्वीकार किया गया कि उसकी तकनीक बंधकों की पहचान, डेटा विश्लेषण और सुरक्षा से जुड़े कार्यों में इस्तेमाल की गई।

क्या कहा Microsoft ने?

Microsoft के प्रवक्ता ने कहा:

“हमने Azure और उससे संबंधित क्लाउड सेवाएं इस्राइल की सरकार को दी हैं। इनका उपयोग युद्ध क्षेत्र में बंधकों की पहचान, खुफिया जानकारी के विश्लेषण और सुरक्षा ऑपरेशनों के लिए किया गया है। किसी भी नागरिक को नुकसान पहुंचाने में इन तकनीकों का उपयोग नहीं हुआ है।”

AI सिस्टम्स “Lavender” और “Gospel” की भूमिका

कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, इस्राइली सेना ने “Lavender” और “Gospel” जैसे AI-आधारित सिस्टम्स का इस्तेमाल किया है जो संभावित हमास आतंकवादियों की पहचान करने और उन्हें निशाना बनाने में मदद करते हैं। इन सिस्टम्स की कार्यप्रणाली को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई है।

AI की मदद से सैकड़ों टार्गेट एक साथ चिन्हित किए जा सकते हैं, जो पारंपरिक युद्ध रणनीति से कहीं अधिक तेज और खतरनाक है। इससे नागरिकों को नुकसान होने की आशंका और बढ़ जाती है।

मानवाधिकार संगठनों और कर्मचारियों की नाराज़गी

Microsoft के कुछ कर्मचारियों और मानवाधिकार संगठनों ने कंपनी की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने मांग की है कि Microsoft को पूरी पारदर्शिता से यह बताना चाहिए कि उसकी AI तकनीकों का इस्तेमाल कहां और कैसे किया गया।

एक कर्मचारी समूह का कहना है:

“हम AI को एक शांति और विकास का साधन मानते हैं, न कि युद्ध और हिंसा का उपकरण। Microsoft को अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना चाहिए।”

तकनीक और युद्ध: एक नैतिक द्वंद्व

इस घटना ने एक बार फिर इस बहस को हवा दी है कि युद्ध में AI का इस्तेमाल कहां तक उचित है? यदि मशीनें यह तय करेंगी कि कौन दुश्मन है और किसे मारना है, तो क्या मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो जाएंगी? AI के इस सैन्यीकरण पर दुनिया भर में नीति-निर्माताओं और टेक्नोलॉजी कंपनियों के बीच संवाद और संतुलन आवश्यक है।


निष्कर्ष:

इस्राइल और Microsoft के बीच हुए इस तकनीकी सहयोग ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य के युद्ध तकनीकी और डेटा-आधारित होंगे। लेकिन इससे जुड़ी नैतिक चुनौतियाँ और मानवाधिकारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है।

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