
महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में हिंदी भाषा को अब अनिवार्य भाषा के तौर पर नहीं, बल्कि तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का फैसला लिया है। यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत लिया गया है, जिसमें छात्रों को तीन भाषाएं पढ़नी होंगी – पहली भाषा मराठी, दूसरी अंग्रेज़ी, और तीसरी भाषा में हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में से चुनाव का विकल्प दिया जाएगा।
क्या है नई व्यवस्था:
- हिंदी अब पहली या दूसरी अनिवार्य भाषा नहीं होगी।
- तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को पढ़ाया जाएगा।
- तीसरी भाषा में छात्रों को हिंदी, संस्कृत, गुजराती, कन्नड़, उर्दू, तेलुगु, तमिल जैसे विकल्प मिलेंगे।
- अगर किसी स्कूल में किसी भाषा को चुनने वाले छात्रों की संख्या कम है, तो उसके लिए डिजिटल माध्यम से पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी।
सरकार का कहना:
राज्य के शिक्षा मंत्री दादा भूसे ने कहा है कि यह फैसला बच्चों को बहुभाषी बनाने और भाषा की विविधता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिया गया है। हिंदी को अनिवार्य बनाना सरकार की मंशा नहीं है, बल्कि छात्रों को विकल्प देना प्राथमिकता है।
विवाद और प्रतिक्रिया:
राजनीतिक दलों, खासकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने इस फैसले की आलोचना की थी, उनका कहना था कि मराठी राज्य में हिंदी को ज़बरदस्ती थोपना सही नहीं है। इस विवाद के बाद सरकार ने स्पष्ट किया कि हिंदी को केवल तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा।