
नीदरलैंड्स और बेल्जियम के बीच समुद्री पवन ऊर्जा परियोजनाओं को लेकर एक अनोखा विवाद सामने आया है। नीदरलैंड्स के मौसम पूर्वानुमान सेवा Whiffle के विशेषज्ञों का कहना है कि बेल्जियम के समुद्री पवन फार्म, जो डच पवन फार्म के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं, हवा की दिशा को प्रभावित कर रहे हैं। इससे डच टरबाइनों की कार्यक्षमता में 3% तक की कमी आ रही है, जिसे ‘विंड शैडो’ या ‘वेक इफेक्ट’ कहा जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रभाव आने वाले समय में और बढ़ सकता है, क्योंकि उत्तरी सागर में पवन फार्मों की संख्या बढ़ रही है। इस स्थिति को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग और समन्वित योजना की आवश्यकता जताई जा रही है।
नीदरलैंड्स और बेल्जियम के अलावा, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, डेनमार्क, फ्रांस, नॉर्वे, आयरलैंड और लक्ज़मबर्ग ने उत्तरी सागर को दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री पवन ऊर्जा क्षेत्र बनाने के लिए सहमति जताई है। इन देशों का लक्ष्य 2030 तक 120 गीगावाट और 2050 तक 300 गीगावाट पवन ऊर्जा उत्पादन का है।
विश्लेषण:
यह विवाद समुद्री पवन ऊर्जा परियोजनाओं के बढ़ते प्रभाव और देशों के बीच संसाधनों के उपयोग को लेकर बढ़ती प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है। ‘विंड शैडो’ प्रभाव से यह स्पष्ट होता है कि एक देश की पवन ऊर्जा परियोजना दूसरे देश की परियोजना की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती है।
इस स्थिति से निपटने के लिए देशों के बीच बेहतर समन्वय और साझा नीति की आवश्यकता है। यदि समय रहते इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो यह भविष्य में ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए चुनौती बन सकता है।