
बलूचिस्तान का स्वतंत्रता संग्राम और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
14 मई 2025 को बलूच नेताओं ने पाकिस्तान से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की मांग की। यह घटना पाकिस्तान और भारत दोनों के लिए एक बड़ा भू-राजनीतिक संदेश है। बलूच नेताओं ने पाकिस्तान की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए इसे बलूचों का अधिकार बताया है।
हालांकि, बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की यह नई घोषणा एक ऐतिहासिक संघर्ष का हिस्सा है। 1876 में अंग्रेजों ने बलूचिस्तान के सबसे बड़े नेता खुदादाद खान (खान ऑफ कलात) से एक संधि की थी, जिसके अनुसार बलूचिस्तान एक आजाद देश था। इस संधि के बाद बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा प्राप्त था। लेकिन 1948 में पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान का सैन्य अधिग्रहण और बलूचों के खिलाफ किए गए अत्याचारों ने इस संघर्ष को और तीव्र कर दिया। इस समय से ही बलूचों ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता की आवाज उठानी शुरू की और अब तक यह मुद्दा लगातार उठता रहा है।
1948 में बलूचिस्तान का पाकिस्तान से जुड़ना और उसके बाद की स्थिति:
1948 में पाकिस्तान ने सैन्य कार्रवाई के माध्यम से बलूचिस्तान को अपने अधीन किया था, जो बलूचों के लिए आज तक एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। बलूचों के मन में यह विचार बसा हुआ है कि पाकिस्तान कभी भी उनकी अस्मिता और अधिकारों का सम्मान नहीं करेगा। यही कारण है कि आज भी कई बलूच नेता पाकिस्तान से स्वतंत्रता की बात करते हैं और इसे बलूचिस्तान के लिए एक ऐतिहासिक आवश्यकता मानते हैं।
बलूचिस्तान का पाकिस्तान से जोड़ना और उसके बाद बलूचों पर दबाव बनाना, उनके संसाधनों का दोहन करना और उनके क्षेत्रीय अधिकारों को नकारना बलूचिस्तान के लिए सदियों से एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस पर बलूच नेता मीर यार बलूच ने अपने बयान में कहा, “हम कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहे। बलूचिस्तान का पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं था, और 1948 में जब पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को अपने साथ मिलाया, तब हमें इसका विरोध करना चाहिए था।”
भारत से बलूचिस्तान की मदद की अपील:
बलूच नेताओं ने अब भारत से अपील की है कि वह बलूचिस्तान के संघर्ष में नैतिक समर्थन प्रदान करे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और बलूचों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, और यह समय आ गया है कि भारत बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज उठाए।
भारत का समर्थन बलूचिस्तान के लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि पाकिस्तान हमेशा भारतीय समर्थन से डरता है। यदि भारत इस संघर्ष में खुलकर बलूचों के पक्ष में खड़ा होता है, तो यह पाकिस्तान पर एक बड़ा दबाव बना सकता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक मजबूत संदेश जाएगा।
भारत की नैतिक जिम्मेदारी:
भारत को बलूचिस्तान के संघर्ष में नैतिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान के द्वारा बलूचों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। बलूचों पर पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों की कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने आलोचना की है, और भारत को इस स्थिति में एक आवाज उठाने की आवश्यकता है।
भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन दे और पाकिस्तान के खिलाफ एक मजबूत रणनीति अपनाए। साथ ही, यह भारतीय सरकार को दक्षिण एशिया में अपनी राजनीतिक और सामरिक स्थिति को मजबूत करने का एक मौका भी प्रदान करता है।
वैश्विक समर्थन और अंतरराष्ट्रीय दबाव:
भारत द्वारा बलूचिस्तान के संघर्ष को समर्थन देने से वैश्विक समुदाय में एक सकारात्मक संदेश जाएगा। इससे पाकिस्तान पर यह दबाव बनेगा कि वह बलूचिस्तान के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करे और वहां के लोगों को उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों का सम्मान दे।
अगर भारत बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को मान्यता देता है, तो यह पाकिस्तान पर न केवल राजनीतिक दबाव डालेगा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर एक अलग किस्म का दबाव पैदा करेगा, जिससे पाकिस्तान को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
भारत और बलूचिस्तान के संबंध:
भारत का बलूचिस्तान के साथ एक लंबा ऐतिहासिक संबंध रहा है, और भारत को इस संघर्ष में शामिल होना चाहिए। भारतीय जनता और बलूचों के बीच कई सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समानताएं हैं। भारत ने पहले भी पाकिस्तान के साथ चल रहे कई विवादों में बलूचिस्तान का समर्थन किया है, और इसे अब औपचारिक रूप से जारी रखने की आवश्यकता है।
भारत द्वारा बलूचिस्तान को समर्थन देने से यह संदेश जाएगा कि भारत दुनिया भर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ खड़ा है और वह किसी भी स्वतंत्रता संग्राम को उचित मानता है।