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ओवैसी की नई चाल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। जहां एक ओर राष्ट्रीय दल और महागठबंधन अपने-अपने समीकरण साधने में जुटे हैं, वहीं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी चुनावी जंग में उतरने की ठोस तैयारी शुरू कर दी है। खास बात यह है कि इस बार ओवैसी की नजर केवल सीमांचल तक सीमित नहीं है, बल्कि वे मिथिलांचल और सारण जैसे नए क्षेत्रों में भी अपनी पार्टी की पकड़ मजबूत करने के इरादे से सक्रिय हो चुके हैं।

ओवैसी का चुनावी प्लान: सीमांचल से सारण तक विस्तार

AIMIM ने पहले ही सीमांचल क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने यहां 5 सीटें जीतकर यह साबित किया था कि मुस्लिम बहुल इलाकों में उनकी पकड़ मजबूत हो रही है। इस बार ओवैसी का मिशन इससे कहीं बड़ा है। 4 मई को वे पूर्वी चंपारण के ढाका और गोपालगंज में रैली करेंगे। यह इस बात का संकेत है कि AIMIM अब सीमांचल से आगे बढ़कर राज्य के अन्य हिस्सों में भी अपने उम्मीदवार उतारने की योजना बना चुकी है।

महागठबंधन की चिंता: मुस्लिम वोटों में सेंध

RJD और महागठबंधन के लिए ओवैसी की सक्रियता चिंता का कारण बन गई है। खासतौर पर मुस्लिम मतदाताओं पर AIMIM की अपील का असर 2020 में देखा गया था, जब RJD सीमांचल में पिछड़ गई थी। इस बार AIMIM अगर मिथिलांचल और सारण जैसे इलाकों में भी मुस्लिम वोटों को बांटने में सफल हो गई, तो इससे RJD को तगड़ा झटका लग सकता है। दूसरी ओर, यह विभाजन NDA के लिए अप्रत्यक्ष रूप से लाभकारी हो सकता है।

ओवैसी का आरोप: मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक माना गया

असदुद्दीन ओवैसी लगातार यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि महागठबंधन खासकर RJD ने मुस्लिम समुदाय को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है, लेकिन सत्ता में उनकी भागीदारी सुनिश्चित नहीं की। उनका दावा है कि मुस्लिमों को सिर्फ टिकट या प्रतिनिधित्व का दिखावा दिया जाता है, जबकि नीतिगत फैसलों में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं होती। यही वजह है कि AIMIM खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

राजनीतिक समीकरणों में बदलाव की आहट

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि AIMIM सीमांचल के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी असरदार प्रदर्शन करती है, तो यह बिहार की चुनावी राजनीति में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है। यह न केवल RJD और महागठबंधन को चुनौती देगा, बल्कि NDA के लिए भी स्थिति जटिल हो सकती है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय के वोट पर नई लड़ाई खड़ी हो रही है।

निष्कर्ष: चुनावी रण में AIMIM की बढ़ती भूमिका

ओवैसी की रणनीति स्पष्ट है—वे खुद को महागठबंधन का विकल्प बनाकर मुस्लिम वोटों का एक अलग ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। बिहार की राजनीति में यह एक बड़ा बदलाव होगा, जहां धर्म, जाति और क्षेत्रीय समीकरणों के साथ AIMIM जैसे दल भी निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार हैं। चुनाव नजदीक आते-आते ओवैसी की सभाएं और रणनीति बिहार के हर राजनीतिक खेमे के लिए एक नई चुनौती बन सकती है।

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