
5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ने के बाद, ढाका सहित अन्य शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों में छात्रों, नागरिकों और अल्पसंख्यकों ने भाग लिया, जो मुख्य रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रणाली के खिलाफ थे। हालांकि, आरक्षण प्रणाली को समाप्त कर दिया गया था, लेकिन प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
इन घटनाओं के परिणामस्वरूप, बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन ने संसद को भंग कर दिया और एक अंतरिम सरकार की घोषणा की। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस को इस अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया। उनका उद्देश्य लोकतांत्रिक सुधारों को लागू करना और निष्पक्ष चुनाव कराना था।
हालांकि, नौ महीने बाद, यूनुस की सरकार राजनीतिक अस्थिरता, दलों के बीच असहमति और चुनावों में देरी के कारण दबाव में है। यूनुस ने हाल ही में इस्तीफे की धमकी दी है, यह कहते हुए कि “अब क्या फायदा?” उनका कहना है कि राजनीतिक दलों के बीच सहमति की कमी और चुनावों में देरी के कारण सरकार की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है।
इस बीच, बांग्लादेशी सेना के प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने यूनुस सरकार को अवैध करार दिया है और दिसंबर 2025 में चुनाव कराने की मांग की है। उन्होंने प्रस्तावित राखाइन गलियारे को भी खारिज कर दिया है, जिससे सरकार और सेना के बीच तनाव बढ़ गया है।
यूनुस के शासनकाल में कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की बढ़ती ताकत और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं चिंता का विषय बन गई हैं। उनकी सरकार ने कई संदिग्ध आतंकवादियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में असुरक्षा की भावना बढ़ी है।
इन घटनाओं के मद्देनजर, बांग्लादेश में एक और तख्तापलट की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में, भारत और अन्य देशों को इस स्थिति पर नजर बनाए रखनी चाहिए और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।