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अदालतें तभी हस्तक्षेप करेंगी जब वक्फ कानून स्पष्ट रूप से असंवैधानिक हो

भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) बी. आर. गवाई ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यदि किसी कानून में संविधान के उल्लंघन का स्पष्ट और ठोस मामला नहीं बनता, तो अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगी।

यह बयान तब आया जब सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ संशोधन कानून को चुनौती दी जा रही थी। अदालत में बहस के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि संविधान की रक्षा करना भले ही न्यायपालिका का दायित्व है, लेकिन संसद द्वारा पारित कानूनों को यूं ही असंवैधानिक घोषित करना भी तर्कसंगत नहीं होगा।


🔍 वक्फ कानून विवाद: पृष्ठभूमि

वक्फ अधिनियम भारत में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों और संस्थाओं के प्रशासन और रख-रखाव से जुड़ा हुआ कानून है। 2025 में सरकार ने इसमें संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड के अधिकारों को कुछ मामलों में सीमित कर दिया और केंद्र सरकार को अधिक प्रशासनिक अधिकार दिए।

इस संशोधन के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की गईं, जिनमें तर्क दिया गया कि यह बदलाव:

  • धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है (संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन),
  • और मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से अनुरोध किया कि वह याचिकाओं की सुनवाई को तीन कानूनी मुद्दों तक सीमित रखे, जिससे एक अंतरिम आदेश पारित किया जा सके।

लेकिन वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जब तक पूरे कानून की समीक्षा नहीं की जाती, तब तक कोई निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा।

इस पर CJI गवाई ने कहा:

“यदि कोई कानून संसद द्वारा पारित किया गया है और उसमें सीधे तौर पर असंवैधानिकता नज़र नहीं आती, तो अदालतों को उसमें दखल देने से बचना चाहिए। हमारा काम संविधान की रक्षा करना है, लेकिन विधायिका के अधिकारों का भी सम्मान करना आवश्यक है।”


📌 अब आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट इस मामले की विस्तृत संवैधानिक पीठ के सामने सुनवाई कर सकती है। इसमें तय किया जाएगा कि वक्फ अधिनियम के संशोधन संविधान की कसौटी पर खरे उतरते हैं या नहीं।

यदि अदालत को लगता है कि कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है, तब ही यह उसे रद्द कर सकती है।


💬 विशेषज्ञों की राय:

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि CJI गवाई का रुख न्यायिक संतुलन और विधायी प्रक्रिया के सम्मान को दर्शाता है। अदालत ने संकेत दिया है कि वह किसी भी कानून को तुरंत असंवैधानिक घोषित करने के पक्ष में नहीं है, जब तक कि उसका सीधा टकराव संविधान से न हो।


📜 निष्कर्ष:

वक्फ कानून 2025 को लेकर उठे विवादों के बीच CJI की यह टिप्पणी एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करती है। यह न सिर्फ संविधान की व्याख्या में न्यायपालिका की भूमिका को स्पष्ट करती है, बल्कि न्यायिक संतुलन और विधायिका के सम्मान की भी याद दिलाती है।

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