
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन ने एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर विवाद में ‘मध्यस्थ’ की भूमिका निभाने की पेशकश की है। एर्दोआन पाकिस्तान की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर इस्लामाबाद पहुंचे थे, जहां उन्होंने पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से कई मुद्दों पर बातचीत की। इसी दौरान उन्होंने कश्मीर को एक “संवेदनशील और अहम मुद्दा” बताया और कहा कि इस मामले का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीरियों की आकांक्षाओं के अनुसार होना चाहिए।
🕊️ एर्दोआन की पहल:
राष्ट्रपति एर्दोआन ने कहा कि तुर्की क्षेत्रीय शांति का पक्षधर है और वह भारत-पाक के बीच तनाव को खत्म करने में मदद करने को तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर मुद्दे के कारण दक्षिण एशिया में स्थिरता प्रभावित हो रही है, जिसे बातचीत और शांतिपूर्ण उपायों से हल किया जाना चाहिए।
भारत की प्रतिक्रिया:
भारत ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं हो सकती। मंत्रालय ने तुर्की के राजदूत को तलब कर इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि इस तरह की टिप्पणियां भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन हैं।
🤝 पाकिस्तान-तुर्की संबंध:
राष्ट्रपति एर्दोआन की पाकिस्तान यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 24 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें रक्षा, व्यापार, शिक्षा, संस्कृति और स्वास्थ्य के क्षेत्र शामिल हैं। तुर्की और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को “भाईचारे” पर आधारित बताया गया है।
🌐 अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तुर्की का रुख:
यह पहली बार नहीं है जब एर्दोआन ने कश्मीर पर बयान दिया हो। इससे पहले भी उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया था, जिस पर भारत ने कड़ा विरोध जताया था। भारत का हमेशा से यही रुख रहा है कि कश्मीर विवाद द्विपक्षीय है और इसे केवल भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है, न कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से।
निष्कर्ष:
तुर्की की यह नई पहल एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर को चर्चा में ले आई है, लेकिन भारत का रुख स्पष्ट और अडिग है – “कोई बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं।”