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बोलने की आज़ादी के साथ जिम्मेदारी भी ज़रूरी


सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई 2025 को अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद की सोशल मीडिया पोस्ट पर सख्त रुख अपनाया, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी को लेकर हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उनके खिलाफ FIR दर्ज करवाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत तो दे दी, लेकिन जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान तीखी प्रतिक्रिया दी।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:

“हर किसी को स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है…. लेकिन क्या ये समय है इन सबके बारे में बात करने का? देश पहले ही किस दौर से गुजर रहा है। कुछ आतंकी हमारे देश में आए और लोगों पर हमला कर दिया… हमें एकजुट होने की जरूरत है। ऐसे समय में ऐसी चीप पॉप्युलेरिटी की आवश्यकता थी?”

प्रोफेसर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की पोस्ट के पीछे कोई गलत इरादा नहीं था, जिस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी:

“आपको पता होना चाहिए कि देश में क्या हो रहा है। आपको बोलने की आजादी है… लेकिन आपका कर्तव्य कहां है?”

जस्टिस ने आगे टिप्पणी की कि प्रोफेसर द्वारा लिखी गई बातें “डॉग व्हिसलिंग” की श्रेणी में आती हैं — यानी ऐसी भाषा जो सतह पर सामान्य दिखे लेकिन अंदरूनी रूप से विभाजन या भड़काव पैदा करे।

उन्होंने यह भी जोड़ा:

“बोलने की आजादी वाले समाज के लिए यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि शब्दों का चयन जानबूझकर दूसरे पक्ष को अपमानित और आहत करने के लिए किया जाता है। याचिकाकर्ता एक प्रोफेसर हैं, उनके पास शब्दों की कमी तो नहीं होगी। वे ऐसे शब्द भी तो चुन सकते थे जिससे किसी की भावना आहत न हो। वह तटस्थ भाषा का प्रयोग कर सकते थे।”

प्रोफेसर महमूदाबाद की एक पोस्ट को लेकर विवाद तब गहरा गया जब उसमें भारतीय सेना की महिला अधिकारियों से जुड़े ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी की गई थी, जिसे राष्ट्रविरोधी और सेना विरोधी माना गया। इस पर सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया आई और अंततः उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई।

अदालत का निर्देश:

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर को अंतरिम राहत देते हुए यह भी निर्देश दिया कि वे इस विषय पर सार्वजनिक तौर पर कोई बयान या पोस्ट न करें जब तक मामला विचाराधीन है।

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